वांछित मन्त्र चुनें

दे॒वीस्ति॒स्रस्ति॒स्रो दे॒वीर॒श्विनेडा॒ सर॑स्वती। शूषं॒ न मध्ये॒ नाभ्या॒मिन्द्रा॑य दधुरिन्द्रि॒यं व॑सु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑ ॥५४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वीः। ति॒स्रः। ति॒स्रः। दे॒वीः। अ॒श्विना॑। इडा॑। सर॑स्वती। शूष॑म्। न। मध्ये॑। नाभ्या॑म्। इन्द्रा॑य। द॒धुः॒। इ॒न्द्रि॒यम्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥५४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:54


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर माता पिता अपने सन्तानों को कैसे करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यार्थी ! जैसे (तिस्रः) माता, पढ़ाने और उपदेश करनेवाली ये तीन (देवीः) निरन्तर विद्या से दीपती हुई स्त्री (वसुधेयस्य) जिसमें धन धरने योग्य है, उस संसार के (मध्ये) बीच (वसुवने) उत्तम धन चाहनेवाले (इन्द्राय) जीव के लिये (तिस्रः) उत्तम, मध्यम, निकृष्ट तीन (देवीः) विद्या से प्रकाश को प्राप्त हुई कन्याओं को (दधुः) धारण करें वा (अश्विना) पढ़ाने और उपदेश करने हारे मनुष्य (इडा) स्तुति करने हारी स्त्री और (सरस्वती) प्रशंसित विज्ञानयुक्त स्त्री (नाभ्याम्) तोंदी में (शूषम्) बल वा सुख के (न) समान (इन्द्रियम्) मन को धारण करें वा जैसे ये सब उक्त पदार्थों को (व्यन्तु) प्राप्त हों, वैसे तू (यज) सब व्यवहारों की सङ्गति किया कर ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे माता, पढ़ाने और उपदेश करने हारी ये तीन पण्डिता स्त्री कुमारियों को पण्डिता कर उनको सुखी करती हैं, वैसे पिता, पढ़ाने और उपदेश करनेवाले विद्वान् कुमार विद्यार्थियों को विद्वान् कर उन्हें अच्छे सभ्य करें ॥५४ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्जननीजनकाः स्वसन्तानान् कीदृशान् कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(देवीः) देदीप्यमानाः (तिस्रः) त्रित्वसंख्याकाः (तिस्रः) (देवीः) विद्यया प्रकाशिताः (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (इडा) स्ताविका (सरस्वती) प्रशस्तविद्यायुक्ता (शूषम्) बलं सुखं वा (न) इव (मध्ये) (नाभ्याम्) तुन्दे (इन्द्राय) जीवाय (दधुः) दध्युः (इन्द्रियम्) अन्तःकरणम् (वसुवने) धनेच्छुकाय (वसुधेयस्य) धेयानि वसूनि यस्मिंस्तस्य जगतः (व्यन्तु) (यज) ॥५४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यार्थिन् ! यथा तिस्रो देवीर्वसुधेयस्य मध्ये वसुवन इन्द्राय तिस्रो देवीर्दधुर्ययाश्विनेडा सरस्वती च नाभ्यां शूषन्नेन्द्रियं दध्युर्यथैत एतानि व्यन्तु तथा त्वं यज ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा जनन्यध्यापिकोपदेष्ट्री च तिस्रो विदुष्यः कुमारीर्विदुषीः कृत्वा सुखयन्ति, तथा जनकाध्यापकोपदेष्टारः कुमारान् विद्यार्थिनो विपश्चितः कृत्वा सुसभ्यान् कुर्य्युः ॥५४ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जशी माता, अध्यापिका व उपदेशिका या तीन विदुषी स्रिया कुमारी मुलींना विदुषी करून त्यांना सुखी करतात तसे पिता, अध्यापक व उपदेशक यांनी विद्यार्थ्यांना विद्वान व सभ्य बनवावे.